Monday, February 4, 2019

इंतेज़ार (एक कविता) Medium

आओ चलो इंतेज़ार करें
आँधियों के रुकने का
बारिशों के थमने का
अंधेरी रात के सुबह में बदलने का
चलो इंतेज़ार करें...
आओ हम यहीं रुक जाएं यहीं हां यहीं उस बड़े पेड़ के पीछे चलो छुप जाएं
जबतक की पानी की बूंदें टूट ना जाएं....
आओ वक़्त की तसवीर बदलने का इंतेज़ार करें
तबतक जबतक की उम्मीदें जिंदा है तबतक....
रगों में खून जबतक रवां है तबतक
इंतेज़ार करें...
कोशिशें जबतक हिम्मत बन कर दिल मे जबतक ज़िंदा है तबतक....
नज़रों के धूमिल हो जाने तक
दर्द के चेहरे पर पसर जाने तक...चलो इंतेज़ार करें
आओ इस भीड़ में कहीं खो जाएं
आओ चलो सो जाएं...जबतक की मौसम बदल न जाए
चलो निकल पड़े उस दूर पहाड़ी के बगल से गयी घुमावदार काली सड़क कहीं दूर चले जाने के लिए...
आओ चलो इंतेज़ार करें
वक़्त के करवट बदलने का
नई सी उजली सुबह के आने का चलो इंतेज़ार करें.....

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