वो लोग अपने घरों से तब निकाले गए
जब उन्हें एक छत की सख़्त जरूरत थी।
उनके हाथ से रोटी तब छीनी गयी
जब वो सख़्त भूख में असहाय पड़े थे।
उनके हांथों से उनके बच्चे तब छीने गए
जब वो उनसे गंभीर मोह में बंध चुके थे।
उनके ज़ख्मो को तब छेड़ा गया
जब वो नासूर बन चुके थे।
तुम्हें नही पता कि
उनके साथ क्या-क्या हुआ तब जबकि वो उसके लिए बिल्कुल तैयार नही थे।
जब उन्हें एक छत की सख़्त जरूरत थी।
उनके हाथ से रोटी तब छीनी गयी
जब वो सख़्त भूख में असहाय पड़े थे।
उनके हांथों से उनके बच्चे तब छीने गए
जब वो उनसे गंभीर मोह में बंध चुके थे।
उनके ज़ख्मो को तब छेड़ा गया
जब वो नासूर बन चुके थे।
तुम्हें नही पता कि
उनके साथ क्या-क्या हुआ तब जबकि वो उसके लिए बिल्कुल तैयार नही थे।
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